Saturday, January 16, 2010
यह ज़िन्दगी तेरी होके भी मेरी होती..
एक बार फिर हवा ने आके मुझे छुआ..
बहती नदी रुकी मुड़ी और मुझसे कुछ यूँ कहा,
यूँ तो आप मुझसे खफा न थे..
दूर थे हमसे पर जुदा न थे,
वोह हर बीता लम्हा आज भी साथ हैं..
साथ थे हम जब .. तारे भी चाँद के आस पास थे,
खुशबू उन लम्हों की साथ लिए.. रहता हूँ में आज भी,
न चाहा था कभी किसी को ऐसे .. जैसे चाहा था तुझे कभी,
वक़्त की आंधी कहूँ या दोनों की नासमझी..
कुछ दिन दूर रहे और कुछ-कुछ दूर हुए,
में न कह सका वो जो महसूस किया हर लम्हा..
उम्मीद और दुवाओं का साथ है बस अब,
और बाकि है वोह यादें.. जो थी मेरी और कुछ तेरी..
पर अब वो हैं बस मेरी और मेरी,
न ज़िन्दगी थमे न यह पल रुके..
पर तू जो अगर मेरे साथ होती ,
तोह यह ज़िन्दगी और भी हसीन होती..
यह ज़िन्दगी तेरी होके भी मेरी होती.
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2 comments:
Nice Poetry Mayank.
Every post reveals a new Mayank.. Impressed.. :)
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